पुष्पेंद्र मिश्र, एमपी हेल्थ न्यूज डाट काॅम
भारत में आज भले ही आयुर्वेद लोगों की पहली पसंद न हो, लेकिन एक वक्त था जब यहां एलोपैथी का नाम तक नहीं था। लोग आयुर्वेद से ही सभी तरह का इलाज कराते थे। इसमें सर्जरी भी शामिल थी। ईसा पूर्व छठी सदी (आज से लगभग 2500 साल पहले) में धंवंतरि के शिष्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता की रचना की जबकि एलोपैथी में मॉडर्न सर्जरी की शुरुआत 17-18वीं सदी में मान सकते हैं। आयुर्वेदिक सर्जरी से जुड़ी तमाम जानकारी दे रहे हैं डॉ. राजीव पुंडीर
बेशक आयुर्वेद भारत का बहुत ही पुराना इलाज का तरीका है। जड़ी-बूटियों, मिनरल्स, लोहा (आयरन), मर्करी (पारा), सोना, चांदी जैसी धातुओं के जरिए इसमें इलाज किया जाता है। हालांकि कुछ लोग ही इस बात को जानते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी (शल्य चिकित्सा) का भी अहम स्थान है। सुश्रुत संहिता में स्पेशलिटी के आधार पर आयुर्वेद को 8 हिस्सों में बांटा गया है:
1. काय चिकित्सा (मेडिसिन): ऐसी बीमारियां जिनमें अमूमन दवाई से इलाज मुमकिन है, जैसे विभिन्न तरह के बुखार, खांसी, पाचन संबंधी बीमारियां।
2. शल्य तंत्र (सर्जरी): वे बीमारियां जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है, जैसे फिस्टुला, पाइल्स आदि।
3. शालाक्य तंत्र (ENT): आंख, कान, नाक, मुंह और गले के रोग।
4. कौमार भृत्य (महिला और बच्चे): स्त्री रोग, प्रसव विज्ञान, बच्चों को होने वाली बीमारियां।
5. अगद तंत्र (विष विज्ञान): ये सभी प्रकार के विषों, जैसे सांप का जहर, धतूरा आदि जैसे जहरीले पौधे का शरीर पर पड़ने वाले असर और उनकी चिकित्सा का विज्ञान है।
6. रसायन तंत्र (रीजूवनेशन और जेरियट्रिक्स): इंसानों को स्वस्थ कैसे रखा जाए और उम्र का असर कैसे कम हो।
7. वाजीकरण तंत्र (सेक्सॉलजी): लंबे समय तक काम शक्ति (सेक्स पावर) को कैसे संजोकर रखा जाए।
8. भूत विद्या (साइकायट्री): मनोरोग से संबंधित।
सर्जरी शुरुआत से ही आयुर्वेद का एक खास हिस्सा रहा है। महर्षि चरक ने जहां चरक-संहिता को काय-चिकित्सा (मेडिसिन) के एक अहम ग्रंथ के रूप में बताया है, वहीं महर्षि सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) के लिए सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें सर्जरी से संबंधित सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है।