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खोज - 28 December, 2020

कोरोना के साथ जीना ‘नया नार्मल’ इसे स्वीकारें

पुष्पेंद्र मिश्र। कोरोना की महामारी ने लोगों के मन में एक डर पैदा कर दिया है। कहने- सुनने में इतनी बातें आती हैं कि मन भटक जाता है। इस स्थिति से कैसे उबरा जाएं इस पर भोपाल के जाने -माने मनोवैज्ञानिक और भोपाल स्कूल आॅफ सोशल साइन्सेस के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डाॅ. विनय मिश्रा से बातचीत के अंश...

प्रश्न: कोरोना के डर से कैसे उबरा जाएंघ्
उत्तर: कोरोना लाॅकडाउन के दौरान लोगों को कई चीजों से वंचित रहना पड़ा। लोगों को अकेेले रहने को भी मजबूर होना पड़ा इसलिए लोगों के मन में असुरक्षा का भाव पैदा हो गया। हमारी लाइफ में यह पहला लाॅकडाउन नहीं था। हम पहले भी इसका सामना कर चुके हैं, लेकिन तब हमने इसे महसूस नहीं किया। याद कीजिए हम सब अपनी मां के गर्भ में नौ माह लाॅकडाउन में रह चुके हैं। घर में बच्चे के जन्म के बाद भी कुछ दिन जच्चा- बच्चा के घर से निकलने पर रोक रहती है। वह भी तो लाॅकडाउन ही था। किसी के पैर में फ्रैक्चर हो जाता है, 21 दिन का प्लास्टर लगने के दौरान भी तो वह लाॅकडाउन जैसी ही स्थिति का सामना करता है। ये हालात नए नहीं हैं, फिर इनसे डर कैसाघ्
प्र: कोरोना ने हमारी जीवन शैली को बदल दिया है, हम इस नयी लाइफ स्टाइल के साथ खुद को कैसे चेन्ज करेंघ्
उ: आज जब हम सोशल डिस्टेंसिंग की बात करते हैं, तो हमें सोशल डिस्कनेक्टिंग पर भी बात करनी चाहिए। प्राब्लम सोशल डिस्टेंसिंग से नहीं है, इसे तो फालो करना है। प्राब्लम डिस्कनेक्ट होने से है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक सही विकल्प है। ध्यान रखें कोरोना से बचाव करते समय परिवार, रिश्तेदारों और पड़ोसियों से दूरी न बन जाए। यह समस्या हमेशा नहीं रहेंगी। बस देखना है इसके खत्म होने में वक्त कितना लगता है। समाज में बदलाव को स्वीकारना सकारात्मकता को जन्म देगा।
प्र: समाज में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते- करते कहीं न कहीं इमोशनल डिस्टेंसिंग की स्थिति आ गई है, ये कैसे दूर होगीघ्
उ: फिलहाल कुछ लोग ऐसा महसूस कर सकते हैं, लेकिन लांग टर्म में इमोश्नल डिस्टेंसिंग जैसी कोई बात नहीं रहेगी। कोरोना काल के कुछ नियमों के चलते यदि हम अपने पारिवारिक आयोजन बड़े स्तर पर नहीं कर पा रहे हैं और सीमित आमंत्रण की बंदिश के चलते किसी एक मौके पर अपने किसी मित्र/ रिश्तेदार को न्यौता नहीं दे पा रहे हैं, तो उन्हें किसी अन्य मौके पर आमंत्रित किया जा सकता है। हमारे मामले में भी कोई ऐसा कर सकता है। इस स्थिति को हकीकत मानकर हमें स्वीकार करना ही होगा। स्वयं उपस्थित न हो पाने वाले घनिष्ठ मित्रों और आत्मीय जन को वीडियो काल के जरिए जन्मदिन आदि की पार्टी से जोड़ा जा सकेगा। इसमें किसी के तिरस्कार जैसी कोई बात नहीं है। आप देखिएगा लोगों को धीरे-धीरे यह व्यवस्था भी अच्छी लगने लगेगी। इससे शादियों आदि में होने वाली फिजूलखर्ची रूकेगी। इन मौकों पर लोग न चाहते हुए भी लाखों रूपये खर्च कर रहे थे। यह एक सामाजिक नियम सा था, जो गैर जरूरी था। अब सम्पर्क भले कम हो पर हम सबको आपस में जुड़ाव बनाये रखना चाहिए। आगे चलकर यही ‘नया नार्मल’ होगा।

प्र: कोरोना के कारण बच्चों की परीक्षाएं टल गईं। कई बच्चों के जाॅब आॅफर टल गए। कैम्पस में सिलेक्ट हुए बच्चों को पैकेज कट की आशंका भी डरा रही है। विद्यार्थी अपने को इस एंजाइटी से कैसे बचाएंघ्
उ: कोरोना का भारत समेत दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर पड़ा है। हम इस सच से आंख नहीं मूंद सकते कि इसका असर हम सब पर व्यक्तिगत रूप से भी पड़ेगा ही। युवाओं को बदली हुई परिस्थितियों से तालमेेल बैठाने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। अपनी स्किल्स को और इम्प्रूव करें। आने वाले दौर में आपके पास जितनी ज्यादा स्किल्स होंगी आपकी उतनी ज्यादा पूछ-परख होगी। आॅनलाइन कोर्सेज, वर्क फ्राम होम और बेबिनार आज की सच्चाई है। पहले तो ये नहीं होते थे। नए हालात के साथ तालमेल बैठाए बिना काम नहीं चलने वाला है।
प्र: परेन्ट्स में एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता हैघ्
उ: इसके लिए जरूरी है कि पेरेन्ट्स पूरी जानकारियां रखें और जानकारी का चयन सम्हल कर करें। सिर्फ आधिकारिक स्रोतों से मिली सूचना पर ही भरोसा करें। ऐसा इसलिए क्योंकि आज जानकारी के कई स्रोत हैं। मन में आशंका मानव व्यवहार का हिस्सा है। जहां अनिश्चितता है, वहीं असुरक्षा जन्म लेती है। यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की सबसे विकट स्थिति है। हम सबको डटकर इसका सामना करना है।